राष्ट्रीय ‘समझ’ को चुनौती देते राजनेता!
8 years ago
पथिक हूं। चलना मेरा काम। चल रहा हूं। मंजिल मिले या नहीं मिले। चिंता नहीं। अपन तो बस ओशो को याद करते हैं। मैं रास्तों में विश्वास नहीं करता। मेरा विश्वास चलने में हैं। क्योंकि मैं जानता हूं कि जहां भी मैं चलूंगा,वहां रास्ता अपने आप बन जाएगा। रास्ते रोने से नहीं, रास्ते चलने से बनते हैं।
3 comments:
हमेशा की तरह शानदार लिखा। शब्दों का क्या जादू है आपकी लेखनी को पढ़कर किसी को भी समझ आ सकता है। एक बिहारी के ग्वालियरराइट होने की दास्तां बेहद शानदार रही। पोस्ट खत्म करते-करते यह बात भी खूब लिखी कि उनका कोई विरोधी नहीं... आपका कहना सही है खुले तौर पर तो उनका कोई विरोधी नहीं पर मन के चोरों का कौन क्या जाने और फिर राजनीति में तो दोस्त भी कब दुश्मन बन जाए कहा नहीं जा सकता। खैर छोडि़ए इन बातों का क्या मतलब.... वैसे ग्वालियर में सभी उनकी इज्जत करतें हैं। आशा है कि उन्हें जब भी मौका मिलेगा ग्वालियर के लिए कुछ बेहतर करेंगे।
इस सहज, सरल, मिलनसार बिहारी के बारे में अपन ने भी कुछ लिखा है, आप से निवेदन है आप थोड़ा-सा समय निकाल कर पढऩे आएं- आपको हम और वे यहां मिलेंगे....... अपना पंचू
संतोष जी आप भी तो छोटानागपुर की वादियों से निकल कर चंबल के बीहड़ों के हो गए हैं... दरअसल प्रभात जी हों... या आप जैसे लोग... बिहार झारखंड की मिट्टी और मध्य प्रदेश की हवा में वो तासीर है जो सुपात्र का चुनाव करती है... ग्वालियर की उर्वर जमीन पर प्रभात जी की प्रतिभा निखरी... और देश आज उनपर गौरव कर रहा है... पत्रकारिता के जरिए राजनीति में प्रवेश... और संतों सा जीवन.. यही हैं हमारे प्रभात भैया... सिंधिया राजघराने की चमक दमक के बीच एक फकीर ने ये दिखा दिया है कि शीर्ष पर जाने के लिए सत्य और सादगी सबसे बड़ा टुल्स है... आपसे बहुत ज्यादा तो परिचित नहीं हूं... लेकिन जितना सुना है... उसे लेकर ये कह सकता हूं कि आप अपनी लेखनी से जो विचारों की क्रांति बिखेर रहे हैं... वो हम जैसे लोगों के लिए प्रेरणा है... प्रभात जी के बारे में जो जानकारियां आपने दी हैं.. उसके लिए धन्यवाद... और हां... मध्यप्रदेश के लोगों ने दिखा दिया है कि आदमी की असली पहचान उसके काम से है... महाराष्ट्र के ठाकरे परिवार के गाल पर यह तमाचा है...
मानव जी
आपका ब्लॉग काफी अच्छा है सामान्य ब्लॉग से थोडा हटकर . कवितायें भी अच्छी है भले ही वो २० - २२ साल के उम्र वाली ही क्यों न हों. बीहड़ में सौम्य बिहारी लेख अच्छा है. आपको बिहारी संस्कृति के बारे में जानकारी भी है पर एक बात और है बिहारी स्वभावत: सौम्य ही होते है. पर प्रभात झा का जो चरित्र उद्घाटित किया है वो सचमुच ओरों से अलग है. एक सलाह है वर्ड वेरिफिकेसन हटा दे इससे कमेन्ट भेजने में असुविधा होती है.
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