राज-राजनीति से ,दूर रखें सेना को
8 years ago
पथिक हूं। चलना मेरा काम। चल रहा हूं। मंजिल मिले या नहीं मिले। चिंता नहीं। अपन तो बस ओशो को याद करते हैं। मैं रास्तों में विश्वास नहीं करता। मेरा विश्वास चलने में हैं। क्योंकि मैं जानता हूं कि जहां भी मैं चलूंगा,वहां रास्ता अपने आप बन जाएगा। रास्ते रोने से नहीं, रास्ते चलने से बनते हैं।
1 comment:
Sir aap Bilkul Sahi kah Rahe hain. Book acchai hai maine Bhi padhai. Lekin afsos wahi aapki purani Batein Likhi hain kitab main ki Jeevan ek Bachat khata hai. JITNA DALOGE, UTNA HI NILEGA. Lekin Kitab Mast hai
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