राज-राजनीति से ,दूर रखें सेना को
7 years ago
पथिक हूं। चलना मेरा काम। चल रहा हूं। मंजिल मिले या नहीं मिले। चिंता नहीं। अपन तो बस ओशो को याद करते हैं। मैं रास्तों में विश्वास नहीं करता। मेरा विश्वास चलने में हैं। क्योंकि मैं जानता हूं कि जहां भी मैं चलूंगा,वहां रास्ता अपने आप बन जाएगा। रास्ते रोने से नहीं, रास्ते चलने से बनते हैं।
1 comment:
ब्लॉग जगत में पहली पोस्ट पर आपको बधाई। सही मायने में पहली पोस्ट सुख पहलौठी संतान जैसा होता है। हालांकि आपने एक जनवरी को मानववाणी के श्रीगणेश का ऐलान किया था लेकिन आपकी छपरा मेल ४८ घंटे विलंब बाद ब्लॉग स्टेशन पर पहुंची है। उम्मीद है कि झूमरी तलैया से निकली आपकी यह छपरा मेल शताब्दी एक्सप्रेस की तर्ज पर ब्लॉग की पटरियों पर दौड़ेगी। आपको शुभकामनाएं
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