Thursday 26 February, 2009

तुम न आईं

रात भर करवटें
बदलता रहा
सारी रात नींद न आई
लगता था जैसे
तुम अब आई
तुम अब आई
सुबह की बयार ने
दरवाजे पर हौले से
थपकी लगाई
लगा कि तुम आई
चिड़ियों कि चहचहाहट
लगा कहीं से तुम्हारी
ही आवाज आई
सूखी पत्तियां खड़खड़ाई
लगा कि तुम आई
भरी दुपहरी में
गरम हवा की सांय.सांय
लगा भागती.दौड़ती तुम
लंबी सांसे....
फिर शाम आई
मंदिरों में घंटियों की टनटन
लगा, तुम्हारी पायल अौर तुम
फिर रात, सुबह, शाम
तुम न आई, तुम न आई
यह जवानी, यही कोई 25 साल की उमर में लिखी थी 1 अब चाह कर भी एेसी कविता नहीं लिख पाता1 देखिए कि कैसे उमर के साथ भाव बदलते हैं1

3 comments:

पूनम एस चव्हाण said...

wah..sirji ek panjabi kahavat hai 'dil hona chahiye jawa, umra vich ki rakhiya' so plz go ahead...

Unknown said...

Sir,

kafi samay ke baad apki kavita padhne mili. apke sath jo waqt rajexpress main guzara tha wo yaad aa gaya.apki lekhni ki umra lambi ho....

regards

avinash shrivastava
bhopal

लोकेन्द्र सिंह said...

bilkul sir ji umra ke sath bhav badlte hai.... kavita behtar lagi... kisi ke intjar mein bas yu hi lagta ki wo ab aai wo ab aai......
thik kaha na humne.