ख्वाब पहले भी
अब भी; आगे भी
सिफॅ टूटते
बनते नहीं हैं, ख्वाब
फिर भी आदमी
देखता है ख्वाब
राष्ट्रीय ‘समझ’ को चुनौती देते राजनेता!
8 years ago
पथिक हूं। चलना मेरा काम। चल रहा हूं। मंजिल मिले या नहीं मिले। चिंता नहीं। अपन तो बस ओशो को याद करते हैं। मैं रास्तों में विश्वास नहीं करता। मेरा विश्वास चलने में हैं। क्योंकि मैं जानता हूं कि जहां भी मैं चलूंगा,वहां रास्ता अपने आप बन जाएगा। रास्ते रोने से नहीं, रास्ते चलने से बनते हैं।
1 comment:
सही कहा.....ख्वाब सिर्फ टूटते हैं बनते नहीं...फिर भी हम ख्वाब देखना नहीं भूलते हैं। ख्वाब ही तो हैं जो हमें कुछ करने के लिए प्रेरणा देते हैं
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