राष्ट्रीय ‘समझ’ को चुनौती देते राजनेता!
8 years ago
पथिक हूं। चलना मेरा काम। चल रहा हूं। मंजिल मिले या नहीं मिले। चिंता नहीं। अपन तो बस ओशो को याद करते हैं। मैं रास्तों में विश्वास नहीं करता। मेरा विश्वास चलने में हैं। क्योंकि मैं जानता हूं कि जहां भी मैं चलूंगा,वहां रास्ता अपने आप बन जाएगा। रास्ते रोने से नहीं, रास्ते चलने से बनते हैं।
2 comments:
aapki baat shi hai lekin patrakarita ko kisi ko mauka hi nahi dena chahiye ki patrkar k upar blam kiya ja sake.
संतोष जी,
मुझे संतोष हुआ, यह जानकर कि आप जैसे बिंदास लिखने वाले भी हैं।
और हाँ...एक शिकायत कि आपका ब्लॉग बहुत समय लेता है खुलने में। इसलिए तो नहीं कि... शायद हर अच्छी चीज़ खुलने में थोड़ा समय तो लेती ही है!
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