राष्ट्रीय ‘समझ’ को चुनौती देते राजनेता!
8 years ago
पथिक हूं। चलना मेरा काम। चल रहा हूं। मंजिल मिले या नहीं मिले। चिंता नहीं। अपन तो बस ओशो को याद करते हैं। मैं रास्तों में विश्वास नहीं करता। मेरा विश्वास चलने में हैं। क्योंकि मैं जानता हूं कि जहां भी मैं चलूंगा,वहां रास्ता अपने आप बन जाएगा। रास्ते रोने से नहीं, रास्ते चलने से बनते हैं।
3 comments:
bhut achha likha hai manav sir. ek ek savd garibo ki laachhari aur mokaparsto ki makkari ke aur ishara kar rahe hai.
sanjay shrivastava
achha likha hai. par aur badhiya ki ummid thi.
-sanjeev sameer
achcha hai, par aur badhiya ki ummeed thi.
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