

पथिक हूं। चलना मेरा काम। चल रहा हूं। मंजिल मिले या नहीं मिले। चिंता नहीं। अपन तो बस ओशो को याद करते हैं। मैं रास्तों में विश्वास नहीं करता। मेरा विश्वास चलने में हैं। क्योंकि मैं जानता हूं कि जहां भी मैं चलूंगा,वहां रास्ता अपने आप बन जाएगा। रास्ते रोने से नहीं, रास्ते चलने से बनते हैं।
No comments:
Post a Comment