सोचो जरा, विचारो
तरंगे सिफॅ
पानी में नहीं उठती
मन में भी उठती है
सोचो जरा, विचारो
लू लहर सिफॅ मौसम
नहीं लाती
लोग भी लाते हैं
गरमी जिस्म ही नहीं
मन में भी होती है
सोचो जरा, विचारो
मौसम के आंसू सब देखते हैं
मन का न कोई
यह भी कि शेरो शायरी
से पेट नहीं भरता
बच्चे कि साइकिल और
बीवी की साड़ी तक
तो ठीक है
पर एेशो. आराम के लिए
दोगलापन चाहिए
और हर कोई दोगला नहीं होता
राष्ट्रीय ‘समझ’ को चुनौती देते राजनेता!
8 years ago
2 comments:
kya bat hai...
bahut khoob...
doglapan aaj kamyabi ki pahli seedi hai...shreeman
very good.....beautiful
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